सवाल खतरनाक से हो चले हैं. खतरा सवाल पूछने वालों पर भी मंडराने लगा है और इसका उदाहरण हाल ही में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में भी देखने को मिला था. खैर यहां बात हो रही है बीजेपी की और सवाल यह कि बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक कौन है, जिन्ना का जीन या दाउद का आईक्यू?
जिन्ना का जिन्न जिस तरीके से बीजेपी के दो वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के भीतर आलोचना झेलने को मजबूर कर दिया था ठीक वैसी ही स्थिति पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी के कुख्यात अपराधी दाऊद इब्राहिम वाले बयान पर होते जा रही है. पार्टी के भीतर कई वरिष्ठ नेता गडकरी से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. इन नेताओं में यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह, गुरूमूर्ति शामिल हैं.
दूसरी ओर राम जेठमलानी ने साफ कहा है कि नितिन गडकरी को तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. जेठमलानी ने कहा कि इस्तीफा दे देने से काई दोषी नहीं हो जाता. उन्होंने कहा कि गडकरी को अपने पद से इस्तीफा देकर जांच का सामना करना चाहिए. उनका पद पर बने रहना पार्टी के हित में नहीं है. इससे पहले महेश जेठमलानी ने भी गडकरी के विरोध में राष्ट्रीय कार्यकारणी से इस्तीफा दे दिया था.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह भी जिन्ना पर लिखे अपने किताब के कारण पार्टी से निकाल दिए गए थें. उनका पार्टी से निष्कासन उनके पुस्तक-विमोचन के 26 घंटे के अंदर ही हो गया था. जिस समय जसवंत सिंह को पार्टी से निकाला गया था उस समय लालकृष्ण आडवाणी संसदीय बोर्ड के सबसे वरिष्ठ सदस्य थें. इससे पहले आडवाणी जिन्ना पर दिए गए अपने बयान को लेकर अपना अध्यक्ष पद गवां चुके थें.
वर्ष 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी द्वारा जिन्ना को धर्म निरपेक्ष बताए जाने के बाद अध्यक्ष पद छोड़ने को विवश होना पड़ा था. हालांकि आडवाणी ने अपने बयान के पक्ष में पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में 11 अगस्त 1947 को दिये गये जिन्ना के प्रसिद्ध भाषण का हवाला दिया था जिसमे उन्होंने कहा था कि नये राष्ट्र पाकिस्तान में अब न कोई हिन्दू होगा और न मुसलमान. सभी पाकिस्तानी होंगे और राज्य सभी धर्मावलम्बियों से समान व्यवहार करेगा. वैसे यह अलग बात है कि जिन्ना की इस सलाह पर पाकिस्तानी हुक्मरानों ने कभी अमल नहीं किया.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी दाऊद इब्राहिम को लेकर दिए गए अपने बयान के बाद कितने समय तक पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहते हैं.
जिन्ना का जिन्न जिस तरीके से बीजेपी के दो वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के भीतर आलोचना झेलने को मजबूर कर दिया था ठीक वैसी ही स्थिति पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी के कुख्यात अपराधी दाऊद इब्राहिम वाले बयान पर होते जा रही है. पार्टी के भीतर कई वरिष्ठ नेता गडकरी से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. इन नेताओं में यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह, गुरूमूर्ति शामिल हैं.
दूसरी ओर राम जेठमलानी ने साफ कहा है कि नितिन गडकरी को तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. जेठमलानी ने कहा कि इस्तीफा दे देने से काई दोषी नहीं हो जाता. उन्होंने कहा कि गडकरी को अपने पद से इस्तीफा देकर जांच का सामना करना चाहिए. उनका पद पर बने रहना पार्टी के हित में नहीं है. इससे पहले महेश जेठमलानी ने भी गडकरी के विरोध में राष्ट्रीय कार्यकारणी से इस्तीफा दे दिया था.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह भी जिन्ना पर लिखे अपने किताब के कारण पार्टी से निकाल दिए गए थें. उनका पार्टी से निष्कासन उनके पुस्तक-विमोचन के 26 घंटे के अंदर ही हो गया था. जिस समय जसवंत सिंह को पार्टी से निकाला गया था उस समय लालकृष्ण आडवाणी संसदीय बोर्ड के सबसे वरिष्ठ सदस्य थें. इससे पहले आडवाणी जिन्ना पर दिए गए अपने बयान को लेकर अपना अध्यक्ष पद गवां चुके थें.
वर्ष 2005 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी द्वारा जिन्ना को धर्म निरपेक्ष बताए जाने के बाद अध्यक्ष पद छोड़ने को विवश होना पड़ा था. हालांकि आडवाणी ने अपने बयान के पक्ष में पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में 11 अगस्त 1947 को दिये गये जिन्ना के प्रसिद्ध भाषण का हवाला दिया था जिसमे उन्होंने कहा था कि नये राष्ट्र पाकिस्तान में अब न कोई हिन्दू होगा और न मुसलमान. सभी पाकिस्तानी होंगे और राज्य सभी धर्मावलम्बियों से समान व्यवहार करेगा. वैसे यह अलग बात है कि जिन्ना की इस सलाह पर पाकिस्तानी हुक्मरानों ने कभी अमल नहीं किया.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी दाऊद इब्राहिम को लेकर दिए गए अपने बयान के बाद कितने समय तक पार्टी के अध्यक्ष पद पर बने रहते हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें