पेट्रोल की कीमत मध्यरात्रि से लागू हो जाती है. अगले एक दो दिन विरोध प्रदर्शन होता है. सरकार की तरफ से बयान जारी किया जाता है. विपक्ष विरोध जताते हैं लेकिन कुछ होता नहीं है और कीमत जारी रहती है. पेट्रोलियम कंपनियों को नुकसान न हो यह बड़ा मसला है... जनता का क्या है चुनाव से पहले मना लेंगे.
ऐसा लग रहा है जैसे सरकार लोक कल्याणकारी संस्था के रूप में नहीं, एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में काम रही है जहां लागत मूल्य के आधार पर वस्तुओं की कीमत तय की जाती है. वरना महंगाई से निपटना एक सरकार के लिए इतना मुश्किल हो जाएगा, यह हास्यास्पद लग रहा है.
सरकार में अर्थशास्त्रियों की नहीं एक सोच की कमी है. शरद पवार के बयान चीनी की कीमत को बढ़ाने के लिए काफी होता था. गोदामों में सड़ते अनाज को गरीबों में मुफ्त बांटने की सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कृषि मंत्री शरद पवार ने नकार दिया था. पवार का कहना था कि मुफ्त गेहूं बांटना मुमकिन नहीं है.
जब से यूपीए सरकार में आई पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में पंख लग गए. इसका असर खाद्य पदार्थों समेत कई अन्य रूप में देखने को मिला. महंगाई दर आसमान छूने लगी. फल, सब्जियों के दाम आम आदमी की पहुंच से देखते देखते निकल गए. सरकार आश्वासन दे दे कर कई दिसम्बर निकाल चुकी है. बैंक का रेपो रेट घर और गाड़ी की किस्त पर भारी पड़ने लगा है. महंगाई की किस्त जब पेट्रोल बम के रूप में सामने आता है तो सरकार आश्वासन देती है, दिसम्बर में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वह दिसम्बर किस वर्ष का होगा पता नहीं चलता.
पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि पर ममता बनर्जी ने काफी कठोर संदेश देने की कोशिश की है. बीजेपी ने भी कड़ा ऐतराज जताकर अपनी विपक्षी पार्टी होने का सबूत दे दिया है. लेकिन सबसे शानदार टिप्पणी थी यशवंत सिन्हा की, 'ये मध्यरात्रि का नरसंहार है.' इन टिप्पणियों का क्या... हमलोग कोई लोक कल्याणकारी राज्य में तो रहते नहीं हैं... अब तो बस एक ही उपाए है अगले तीन वर्षों के लिए... हमें इस देश को चलाने वाली प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पर भरोसा करना चाहिए.
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