अनशन की समाप्ति के ठीक बाद अन्ना ने अपना प्रेस कांफ्रेंस रखा. पहला विवाद वहीं से शुरू हो गया. ग्रामीण विकास की बात हुई और मीडिया सहित उनके कई समर्थकों को यह लगा कि अन्ना ने मोदी की तारीफ कर दी है. बाद में अन्ना इसपर सफाई देते फिरते रहे.
दूसरा विवाद उठा समिति में शांति भूषण एवं प्रशांत भूषण को शामिल किए जाने को लेकर. बाबा रामदेव की नाराजगी सबसे ज्यादा रही. इसपर भी अन्ना को सफाई देनी पड़ी. हालांकि बात संभली लेकिन विवाद मीडिया में आ ही गया.
जनलोकपाल बिल को लेकर कपिल सिब्बल के बयान पर भी सफाई देने का काम चलते रहा जिसमें उन्होंने कहा था कि इस बिल से कुछ नहीं होने वाला है (शिक्षा, चिकित्सा और अन्य समस्याओं के लिए लोग नेता को ही फोन करते हैं, वह समस्या तो इस बिल से हल नहीं होगा...). बाद में अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हजारे को यहां तक कहना पड़ा कि अगर उनको इस बिल पर भरोसा नहीं है तो उन्हें समिति से इस्तीफा दे देना चाहिए. इसे आप तीसरा विवाद कह सकते हैं.
चौथा विवाद रहा शांति भूषण और अमर सिंह के बीच हुए तथाकथित बातचीत का टेप जारी होना. यह मसला 2006 का है जैसा कि अमर सिंह बता रहे हैं. अमर सिंह का कहना है कि उन्हें जबरदस्ती इस मामले में घसीटा जा रहा है जबकि शांति भूषण की ओर से यह कहा जा रहा है कि यह टेप ही फर्जी है. अन्ना हजारे को इस पर भी सफाई देना पड़ रहा है.
विवादों के बीच अन्ना के नरम रुख की बात भी हो रही है और मूल जन लोकपाल बिल में आए कई बदलाव की भी. समिति की पहली बैठक होने तक ये सारे विवाद और बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अभी तो कई और बैठकें होनी है. कहीं ऐसा न हो कि लोकपाल बिल बनाए जाने तक जन लोकपाल बिल की सारी बातें बदल जाए और जो सरकार चाह रही है वही बिल लोगों के सामने आए... क्योंकि राजनीति और समाज सेवा का कोई सीधा संबंध हमें अभी तक नहीं दिखा. जिस काम से हमारे नेताओं का कोई फायदा न हो, वह उस काम को कभी नहीं करेंगे. आखिर नेता और समाजसेवक में यही तो अंतर होता है.
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