दो शब्द
यह कैसा फरमान है जो देश की जनता को अपने ही देश में बेगाने होने का एहसास कराएगा। मोटर कानून के तहत किसी भी राज्य का ड्राईविंग लाइसेंस किसी भी राज्य में मान्य है लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं होगा। क्या दिल्ली अलग देश है..... अगर प्रत्येक राज्य इस प्रकार का कानून बनाने लगे तो देश का क्या होगा...
दैनिक जागरण ने इस मसले पर बहुत बेहतर तरीके से सवाल उठाया है। यहां प्रस्तुत है वह आलेख-
एक नेक इरादा किस तरह तुगलकी आदेश में तब्दील हो जाता है, इसे दिल्ली के उप राज्यपाल के उस निर्णय से समझा जा सकता है जिसके तहत 15 जनवरी से देश की राजधानी में पहचान पत्र अनिवार्य किया जा रहा है। क्या उप राज्यपाल यह मान रहे हैं कि दिल्ली में रहने और यहां आने वाले लोग पहचान पत्र से लैस हैं-और वह भी फोटोयुक्त पहचान पत्र से? आखिर वह इस सामान्य से तथ्य से क्यों नहीं अवगत कि देश के करोड़ों लोगों की तरह दिल्ली में रहने वाले लाखों लोगों के पास भी कोई पहचान पत्र नहीं? इनमें से बहुत तो ऐसे हैं जो आसानी से पहचान पत्र हासिल भी नहीं कर सकते-और कम से कम महज दस दिन में तो कदापि नहीं। वैसे भी दिल्ली सरकार ने ऐसा कुछ नहीं कहा है कि जिनके पास पहचान पत्र नहीं हैं वे इस-इस तरह से अपनी शिनाख्त का दस्तावेज हासिल कर लें। पहचान पत्र की अनिवार्यता का सारा बोझ आम जनता के कंधों पर डालना तो अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना है। किसी भी सरकार के लिए यह उचित नहीं कि वह अपनी जिम्मेदारी जनता के मत्थे मढ़ दे। यदि दिल्ली और शेष देश में बहुत से लोगों के पास पहचान पत्र नहीं तो इसके लिए सरकारें उत्तरदायी हैं। यह एक विडंबना है कि देश के सभी लोगों के पास न तो मतदाता पहचान पत्र हैं और न ही अन्य कोई ऐसा प्रामाणिक दस्तावेज जिससे वे आसानी से खुद को भारत का नागरिक सिद्ध कर सकें।यद्यपि सभी को मतदाता पहचान पत्र से लैस करने की कवायद में अरबों रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन लक्ष्य अभी भी दूर है। क्या इसके लिए जनता को दोष दिया जा सकता है? क्या यह बेहतर नहीं होता कि दिल्ली में पहचान पत्र को लगभग तत्काल प्रभाव से अनिवार्य करने के बजाय लोगों को थोड़ी मोहलत दी जाती? इस निर्णय को चरणबद्ध ढंग से भी लागू किया जा सकता था और प्रारंभ में केवल वाहनों का प्रयोग करने वालों के लिए पहचान पत्र अनिवार्य किया जाता।
देश के सभी नागरिकों को प्रामाणिक पहचान पत्र से लैस करने की एक पहल राजग शासन के जमाने में शुरू हुई थी, लेकिन आज उसके बारे में कोई जानकारी देने वाला नहीं। बेहतर हो कि केंद्र एवं राज्य सरकारें ऐसी कोई व्यवस्था करें जिससे देश का हर नागरिक विश्वसनीय पहचान पत्र का धारक बन सके। इससे सुरक्षा संबंधी खतरों को कम करने में मदद मिलने के साथ ही अन्य अनेक समस्याओं का समाधान भी हो सकेगा। चूंकि विश्व के अनेक देश अपने नागरिकों को ऐसे पहचान पत्र प्रदान कर चुके हैं इसलिए भारत को भी ऐसा करना चाहिए। यह समय की मांग भी है और एक जरूरत भी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग का भी सहयोग लिया जा सकता है। दिल्ली के उप राज्यपाल ने पहचान पत्रों की जो आवश्यकता महसूस की उसमें कुछ भी अनुचित नहीं। जो राजनीतिक दल उनके निर्णय की वापसी की मांग कर रहे हैं उन्हें ऐसे उपाय सुझाना चाहिए जिससे सभी नागरिक भरोसेमंद पहचान पत्र प्राप्त कर सकें ताकि घुसपैठियों, आतंकियों और अन्य अवांछित तत्वों से छुटकारा मिल सके। अच्छा होगा कि पहचान पत्र के सवाल पर गंभीरतापूर्वक विचार हो, जिससे उनका सही तरह से इस्तेमाल हो सके और उन खतरों को दूर किया जा सके जिनसे बचने का इरादा दिल्ली सरकार के निर्णय में निहित है।
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