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रामसेतु मामले पर उच्चतम न्यायालय में केन्द्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे से जुड़े विवाद ने रविवार को नया मोड़ ले लिया और अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगी जयराम रमेश की टिप्पणी की प्रतिक्रिया में संस्कृति मंत्री अम्बिका सोनी ने पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर डाली।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के दो वरिष्ठ अधिकारियों के निलंबन और संस्थान की निदेशक और आईएएस अधिकारी अंशु वैश्य से स्पष्टीकरण माँगने के एक दिन बाद वाणिज्य राज्यमंत्री जयराम रमेश ने अम्बिका पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें गलत तरीके से तैयार हलफनामे के मसौदे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। संप्रग प्रमुख सोनिया गाँधी से मुलाकात करने के बाद अम्बिका ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लगता है कि मुझसे गलती हुई है और वे मेरा इस्तीफा चाहते हैं, तो मैं पद त्यागने में एक पल का भी वक्त नहीं लूँगी।
शीर्ष अदालत में इस सप्ताह दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि भगवान राम या मानव निर्मित पुल रामसेतु के अस्तित्व से जुड़े कोई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। इस हलफनामे पर सरकार को चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ा। हालाँकि इस हलफनामे को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि का समर्थन मिला है, जिनका दल जोर-शोर से सेतुसमुद्रम परियोजना का समर्थन कर रहा है। करुणानिधि ने कहा कि संप्रग गठबंधन का अहम सहयोगी दल द्रमुक अंत तक परियोजना के लिए लड़ाई लड़ेगा।
सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाले हलफनामे को लेकर आलोचना की जद में आईं अम्बिका ने यह समझाने की कोशिश की कि उनके मंत्रालय ने इसमें कोई गलती नहीं की। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने सात सितंबर को तीन सुझाव दिए थे, जिनमें से दो पर अमल किया गया, लेकिन तीसरे को नजरअंदाज कर दिया गया। जापान दौरे से बीती रात लौटीं अम्बिका ने इस मामले में अपने मंत्रालय की भूमिका स्पष्ट करने कि लिए आज सुबह सोनिया से मुलाकात की। मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि संस्कृति मंत्रालय ने हलफनामे में तीन सुधार किए थे। इनमें से दो ठीक कर लिए गए थे, जबकि तीसरा गायब था।अम्बिका ने कहा कि विभागीय जाँच जारी है। हम पता लगाएँगे कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
कोलकाता में वाणिज्य राज्यमंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि यदि वे संस्कृति मंत्री होते तो उन्होंने इस मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया होता। इसी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया माँगने पर अम्बिका ने इस्तीफे की पेशकश की।रमेश ने कहा था कि हलफनामे का मसौदा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने तैयार किया था और संस्कृति मंत्रालय को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
अपनी बात
बात आस्था और विश्वास की है। भगवान राम यहां के कण-कण में रचे बसे हैं। सरकार ने जो हलफनामा कोर्ट में दी थी उसमें राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए बिना भी बात को कही जा सकती थी। हालांकि हलफनामा को वापस लेकर सरकार ने भले ही मामले को शांत करने की कोशिश की है लेकिन मुद्दा तो भाजपा और उसके सहयोगियों के हाथ लग ही गया है। आगे-आगे देखिए होता है क्या ?
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