चुनावी जंग में आम आदमी की स्थिति एक बार फिर महत्वपूर्ण हो गई। ऐसा सिर्फ पांच साल में एक बार दिखने को मिलता है। नेताओं के हाथ जुड़ जाते हैं और चुनाव जीतने के बाद वह हाथ अलविदा कहता हुआ दिखता है। अलविदा का यह हाथ पांच सालों के लिए होता है। आम आदमी की जिंदगी फिर से रोजी रोटी की तलाश में जुट जाती है। इस दौरान यह पता नहीं चलता है कि वह पांच साल कब गुजर गए और दूसरा पांच साल फिर से सामने आ गया। इसका एहसास नेताओं के हाथ जोड़ने के बाद ही पता चलता है।
यह सिलसिला आज से नहीं पिछले छह दशक से जारी है। गरीबी की मार झेल रहे लोगों में कोई बदलाव नहीं आया है। सरकारी आंकड़ों का खेल खुब हुआ इस बीच। हकीकत अभी भी यही है कि इस देश में मुट्ठी भर लोग धनी होते जा रहे हैं और जो गरीब थे वह दिन प्रति दिन और भी गरीब होते जा रहे हैं। सरकार की नीति आज भी चंद लोगों की रखवाली में जुटी रहती है या फिर उसी के इर्द गिर्द घुमती रहती है। विश्वास न हो तो सेज का उदाहरण आपके सामने है।
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बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्यवस्था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...
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